भारत को जम्बूद्वीप के नाम से क्यों जाना जाता है?

किस देश को जम्बूद्वीप के नाम से भी जाना जाता है

संस्कृत में जम्बूद्वीप का अर्थ है जहां जंबू के पेड़ Tree of Indian Blackberry उगते हैं। Ancient Time में भारतीयों द्वारा भारत को सूचित करने (Indicate) करने के लिए जम्बूदीप शब्द का उपयोग किया जाता है. कहीं कहीं लोग Jambudip and Jambudvip उच्चारण करते हैं। जम्बूद्वीप शब्द का प्रयोग अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया था। कहा जाता है कि भारत भूमि पे या भारतवर्ष में जन्म लेने के लिए प्राणी ही नहीं देवी- देवता भी लालाइत रहते हैं. इस देश में या इस धरती पर अनेकों पर्वत श्रृंखलाएं एवं नदियाँ विध्यमान हैं और उन पर्वतों पे और नदियों के तट पे बड़े बड़े ऋषि मुनि एवं आत्मज्ञानी अपने आश्रम बना कर निवास करते थे, कुछ तो आज भी रहते हैंl

भारतवर्ष एक कर्मप्रधान देश है और यहाँ जो जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल मिलता है। पुराणिक ब्रह्मांड शास्त्र के अनुसार, संपूर्ण ब्रह्मांड सात सांद्र द्वीप महाद्वीपों में बांटा गया है सात घेरे वाले महासागरों से अलग, सभी पिछले वाले के Size से दोगुना आकर size का होता है (भीतर से बाहर की ओर ) पुराणों में वर्णित इन सात महाद्वीपों को जम्बूदीप, प्लाक्सद्वीप, सल्मालिद्वीप, कुसाद्वीप, क्रौनकाद्वीप, सकादिविप और पुष्करद्वीप कहा जाता है। सात मध्यवर्ती महासागरों में क्रमशः नमक-पानी, गन्ना का रस, शराब, घी, दही, दूध और पानी होता है।

जम्बूद्वीप को सुदर्शन द्वीप के रूप में भी जाना जाता है, उपर्युक्त योजना में सबसे समेकित द्वीप बनाता है। इसका नाम जंबू पेड़ (भारतीय ब्लैकबेरी के लिए एक और नाम) Generally हमलोग जम्बू को जामुन के नाम से जानते हैं. ऐसा विश्वास believe है की जिस जगह पे जंबू के पेड़ यानी जामुन के पेड़ ज्यादा होते थे इसलिए इस भू -भाग को जम्बूद्वीप कहा जाता था. जंबू के पेड़ के बारे में विष्णुपुराण (च 2) में कहा गया है कि इसके फल हाथियों जितना बड़ा होता है और जब वे सड़ जाते हैं और पहाड़ों के ऊपर गिर जाते हैं, तो उनके व्यक्त रस से रस की एक नदी बनती है। इस तरह की नदी को जंबुनदी (जंबू नदी) कहा जाता है और जंबुद्वीप के तरफ से बहती है, जिसके निवासियों ने इसका पानी पीया है। जैसा कि मार्कण्डेय पुराण में वर्णन है कि जम्बूद्वीप का प्रसार उत्तर और दक्षिण के बजाय मध्य क्षेत्र में ज्यादा था, और उस फैलाव क्षेत्र को मेरुवर्ष या इलावर्त के नाम से जानते थे. इलावर्त के केंद्र में पहाड़ों के राजा सुनहरे मेरु पर्वत है. मेरु पर्वत के शिखर पर, भगवान ब्रह्मा का विशाल शहर है, जिसे ब्रह्मपुरी के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मपुरी के आस-पास आठ 8 और भी शहर हैं – जिसमें से एक भगवान इंद्र और सात अन्य देवताओं का है।

मार्कंडेय पुराण और ब्रह्मांड पुराण जम्बूद्वीप को चार विशाल क्षेत्रों में विभाजित करते हैं, जो कि आकर में कमल के चार पंखुड़ियों की सामान हैं, एवं मेरु पर्वत एक फली जैसे केंद्र में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मपुरी शहर नदी से घिरा हुआ है, जिसे आकाश गंगा कहा जाता है. आकाश गंगा को भगवान विष्णु के पैर से आगे से निकलता है और चंद्र क्षेत्र धोने के बाद “आसमान के माध्यम से” गिरता है और ब्रह्मपुरी को घेरने के बाद “चार शक्तिशाली धाराओं में विभाजित होता है”, जो चार विपरीत दिशाओं में बहता है ऐसा मानते हैं.

एक कथा के अनुसार महाराज सागर के पुत्रों द्वारा पृथ्वी को खोदने से जम्बूद्वीप में आठ अन्य उपद्वीप भी बन गए थे .
स्वर्णप्रस्थ
चन्द्रशुक्ल
आवर्तन
रमणक
मन्दहारिण
पांच्यजन्य
सिंहल और
लंका

वैसे यदि देखा जाय तो आज का भारतवर्ष जम्बूद्वीप से काफ़ी छोटा है, तब का भारतवर्ष में ही आर्यावर्त स्थित था. आज का हमारा भारत ना ही जम्बूद्वीप है न भारतवर्ष और ना हीं आर्यावर्त, हिंदुस्तान भी है तो आधा अधूरा. इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म की उत्पत्ति के पूर्व यह लिखित प्राचीन ग्रंथ के अनुसार :- ” हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थान प्रचक्षते॥- (बृहस्पति आगम)

अर्थात : हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। यानी कि हिन्दुस्तान चंद्रगुप्त मौर्य के काल में था लेकिन आज जिसे हम हिन्दुस्तान कहते हैं वह क्या है?

जम्बूद्वीप का विस्तार

मध्यलोक में असंख्यात द्वीप-समूहों से वेष्टित गोल तथा जंबूवृक्ष से युक्त जंबूद्वीप स्थित है। यह एक लाख योजन विस्तार वाला है|

जंबूद्वीप की परिधि – तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताइस योजन, तीन कोश, एक सौ अट्ठाइस धनुष और कुछ अधिक साढ़े तेरह अंगुल है अर्थात् योजन ३,१६,२२७ योजन ३ कोश १२८ धनुष १३-(१/२) अंगुल है। लगभग १२६४९०८००६ मील।

जम्बूद्वीप की जगती – आठ योजन (३२०००मील) ऊँची, मूल में बारह (४८००० मील), मध्य में आठ (३२००० मील) और ऊपर में चार महायोजन (१६०००) मील विस्तार वाली है। जंबूद्वीप के परकोटे को जगती कहते हैं। यह जगती मूल में वङ्कामय, मध्य में सर्वरत्नमय और शिखर पर वैडूर्यमणि से निर्मित है, इस जगती के मूल प्रदेश में पूर्व-पश्चिम की ओर सात-सात गुफायें हैं, तोरणों से रमणीय, अनादिनिधन ये गुफायें महानदियों के लिए प्रवेश द्वार हैं।

वेदिका – जगती के उपरिम भाग पर ठीक बीच में दिव्य सुवर्णमय वेदिका है। यह दो कोश ऊँची और पांच सौ धनुष चौड़ी है अर्थात् ऊँचाई २ कोश और चौड़ाई ५०० धनुष है।

जगती के उपरिम विस्तार चार योजन में वेदी के विस्तार को घटाकर शेष को आधा करने पर वेदी के एक पाश्र्व भाग में जगती का विस्तार है यथा धनुष।

विशेष – दो हजार धनुष का एक कोश और चार कोश का एक योजन होने से चार योजन में ३२००० धनुष होते हैं अत: ३२००० धनुष में ५०० धनुष घटाया है।

वेदी के दोनों पाश्र्व भागों में उत्तम वापियों से संयुक्त वन खंड हैं। वेदी के अभ्यंतर भाग में महोरग जाति के व्यंतर देवों के नगर हैं। इन व्यंतर नगरों के भवनों में अकृत्रिम जिनमंदिर शोभित हैं।

जंबूद्वीप के प्रमुख द्वार – चारों दिशाओं में क्रम से विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित ये चार गोपुरद्वार हैं। ये आठ महायोजन (३२००० मील) ऊँचे और चार योजन (१६००० मील) विस्तृत हैं। सब गोपुर द्वारों में सिंहासन, तीन छत्र, भामंडल और चामर आदि से युक्त जिनप्रतिमायें स्थित हैं। ये द्वार अपने-अपने नाम के व्यंतर देवों से रक्षित हैं।। प्रत्येक द्वार के उपरिम भाग में सत्रह खन (तलों) से युक्त, उत्तम द्वार हैं।

विजय आदि देवों के नगर – द्वार के ऊपर आकाश में बारह हजार योजन लम्बा, छह हजार योजन विस्तृत विजयदेव का नगर है। ऐसे ही वैजयंत आदि के नगर हैं। इनमें अनेकों देवभवनों में जिनमंदिर शोभित हैं। विजय आदि देव अपने-अपने नगरों में देवियों और परिवार देवों से युक्त निवास करते हैं।

वनखंड वेदिका – जगती के अभ्यंतर भाग में पृथ्वीतल पर दो कोस विस्तृत आम्रवृक्षों से युक्त वनखंड हैं। सुवर्ण रत्नों से निर्मित उस उद्यान की वेदिका दो कोस ऊंची, पांच सौ धनुष चौड़ी है।

जम्बूद्वीप का विस्तार – मध्यलोक में असंख्यात द्वीप-समूहों से वेष्टित गोल तथा जंबूवृक्ष से युक्त जंबूद्वीप स्थित है। यह एक लाख योजन विस्तार वाला है|

जंबूद्वीप की परिधि – तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताइस योजन, तीन कोश, एक सौ अट्ठाइस धनुष और कुछ अधिक साढ़े तेरह अंगुल है अर्थात् योजन ३,१६,२२७ योजन ३ कोश १२८ धनुष १३-(१/२) अंगुल है। लगभग १२६४९०८००६ मील।

जम्बूद्वीप का क्षेत्रफल – सात सौ नब्बे करोड़, छप्पन लाख, चौरानवे हजार, एक सौ पचास ७९०,५६,९४,१५० योजन है अर्थात् तीन नील, सोलह खबर, बाईस अरब, सतहत्तर करोड़, छ्यासठ लाख (३,१६,२२,७७,६६,००,०००) मील है।

जम्बूद्वीप की जगती – आठ योजन (३२०००मील) ऊँची, मूल में बारह (४८००० मील), मध्य में आठ (३२००० मील) और ऊपर में चार महायोजन (१६०००) मील विस्तार वाली है। जंबूद्वीप के परकोटे को जगती कहते हैं। यह जगती मूल में वङ्कामय, मध्य में सर्वरत्नमय और शिखर पर वैडूर्यमणि से निर्मित है, इस जगती के मूल प्रदेश में पूर्व-पश्चिम की ओर सात-सात गुफायें हैं, तोरणों से रमणीय, अनादिनिधन ये गुफायें महानदियों के लिए प्रवेश द्वार हैं।

वेदिका – जगती के उपरिम भाग पर ठीक बीच में दिव्य सुवर्णमय वेदिका है। यह दो कोश ऊँची और पांच सौ धनुष चौड़ी है अर्थात् ऊँचाई २ कोश और चौड़ाई ५०० धनुष है।

जगती के उपरिम विस्तार चार योजन में वेदी के विस्तार को घटाकर शेष को आधा करने पर वेदी के एक पाश्र्व भाग में जगती का विस्तार है यथा धनुष।

विशेष – दो हजार धनुष का एक कोश और चार कोश का एक योजन होने से चार योजन में ३२००० धनुष होते हैं अत: ३२००० धनुष में ५०० धनुष घटाया है।

वेदी के दोनों पाश्र्व भागों में उत्तम वापियों से संयुक्त वन खंड हैं। वेदी के अभ्यंतर भाग में महोरग जाति के व्यंतर देवों के नगर हैं। इन व्यंतर नगरों के भवनों में अकृत्रिम जिनमंदिर शोभित हैं।

जंबूद्वीप के प्रमुख द्वार – चारों दिशाओं में क्रम से विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित ये चार गोपुरद्वार हैं। ये आठ महायोजन (३२००० मील) ऊँचे और चार योजन (१६००० मील) विस्तृत हैं। सब गोपुर द्वारों में सिंहासन, तीन छत्र, भामंडल और चामर आदि से युक्त जिनप्रतिमायें स्थित हैं। ये द्वार अपने-अपने नाम के व्यंतर देवों से रक्षित हैं।। प्रत्येक द्वार के उपरिम भाग में सत्रह खन (तलों) से युक्त, उत्तम द्वार हैं।

विजय आदि देवों के नगर – द्वार के ऊपर आकाश में बारह हजार योजन लम्बा, छह हजार योजन विस्तृत विजयदेव का नगर है। ऐसे ही वैजयंत आदि के नगर हैं। इनमें अनेकों देवभवनों में जिनमंदिर शोभित हैं। विजय आदि देव अपने-अपने नगरों में देवियों और परिवार देवों से युक्त निवास करते हैं।

वनखंड वेदिका – जगती के अभ्यंतर भाग में पृथ्वीतल पर दो कोस विस्तृत आम्रवृक्षों से युक्त वनखंड हैं। सुवर्ण रत्नों से निर्मित उस उद्यान की वेदिका दो कोस ऊंची, पांच सौ धनुष चौड़ी है।

 

जंबूद्वीप का सामान्य वर्णन

जंबूद्वीप के भीतर दक्षिण की ओर भरत क्षेत्र है। उसके आगे हैमवत,हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत ये सात क्षेत्र हैं। हिमवान, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी ये छह पर्वत हैं।

दक्षिण में भरतक्षेत्र का विस्तार योजन है। भरतक्षेत्र से दूना हिमवान पर्वत है, उससे दूना हैमवत क्षेत्र हैंं। ऐसे विदेहक्षेत्र तक दूना-दूना विस्तार आगे आधा-आधा है।

भरतक्षेत्र के मध्य में पूर्व-पश्चिम लंबा समुद्र को स्पर्श करता हुआ विजयार्ध पर्वत है।

हिमवान आदि छह कुलाचलों पर क्रम से पद्म, महापद्म, तिगिंछ, केशरी, पुंडरीक और महापुंडरीक ऐसे छह सरोवर हैं।

इन छह सरोवरों से गंगा-सिंधु, रोहित-रोहितास्या, हरित-हरिकांता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकांता, सुवर्णकूला-रूप्यकूला और रक्ता-रक्तोदा ये चौदह नदियां निकलती हैं जो कि एक-एक क्षेत्र में दो-दो नदी बहती हुई सात क्षेत्रों में बहती हैं।

 

विदेहक्षेत्र के बीचोंबीच में सुमेरु पर्वत

भरतक्षेत्र के छह खंड – हिमवान पर्वत के पद्मसरोवर से गंगा-सिंधु नदियां निकलकर नीचे कुंड में गिरकर विजयार्ध पर्वत की गुफाओं में प्रवेश करके दक्षिण भरत में आ जाती हैं और पूर्व-पश्चिम समुद्र में प्रवेश कर जाती हैं इसलिये भरतक्षेत्र के छह खंड हो जाते हैं।

इस प्रकार से जंबूद्वीप की यह सामान्य व्यवस्था है। इस जंबूद्वीप में तीन सौ ग्यारह पर्वत हैं जिनमें एक मेरु, छह कुलाचल, चार गजदंत, सोलह वक्षार, चौंतीस विजयार्ध, चौंतीस वृषभाचल, चार नाभिगिरि, चार यमकगिरि, आठ दिग्गजेंद्र और दो सौ कांचनगिरि हैं। यथा-

१±६±४±१६±३४±३४±४±४±८±२००·३११

सत्रह लाख बानवे हजार नब्बे नदियां हैं। चौंतीस कर्मभूमि, छह भोगभूमि, जम्बू- शाल्मलि ऐसे दो वृक्ष, चौंतीस आर्यखण्ड, एक सौ सत्तर म्लेच्छ खंड और पांच सौ अड़सठ कूट हैं। ये सब कहाँ-कहाँ हैं ? इन सभी को इस पुस्तक में बताया गया है।

 

जंबूद्वीप का विशेष वर्णन

छह कुलाचल

हिमवान – हिमवानपर्वत भरतक्षेत्र की तरफ १४४७१-५/१९ योजन (५७८८५०५२-१२/१९ मील) लम्बा है और हैमवत क्षेत्र की तरफ २४९३२-१/१९ योजन (९९७२८२१०-१०/१९ मील) लम्बा है। इसकी चौड़ाई १०५२-१२/१९ योजन (४२०८४२१(१/१९मील) प्रमाण है। ऊंचाई १०० योजन (४००००० मील) प्रमाण है।

महाहिमवान – यह पर्वत ४२१०-१०/१९ योजन (१६८४२१०५-५/१९ मील) विस्तार वाला है। हैमवत की तरफ इसकी लंबाई ३७६७४-१६/१९ योजन (१५०६९९३६८-८/१९ मील) है और हरिक्षेत्र की तरफ इसकी लंबाई ५३९३१-६/१९ योजन (२१५७२५२६३-३/१९ मील) है। यह पर्वत २०० योजन (८००००० मील) ऊँचा है।

निषध – यह पर्वत १६८४२-२/१९ योजन (६७३६८०००-१/१९ मील) विस्तृत है। इसकी हरिक्षेत्र की तरफ लंबाई ७३९०१-१७/१९ योजन (२९५६०४३५७-१७/१९ मील) एवं विदेह की तरफ की लंबाई ९४१५६-२/१९ योजन (३७६६२४४२१-१/१९ मील) है। इसकी ऊंचाई ४०० योजन (१६०००००मील) है।

आगे का नील पर्वत निषध के प्रमाण वाला है, रूक्मी पर्वत महाहिमवान सदृश है और शिखरी पर्वत हिमवान के प्रमाण वाला है।

पर्वतों के वर्ण-हिमवान् पर्वत का वर्ण सुवर्णमय है आगे क्रम से चांदी, तपाये हुये सुवर्ण, वैडूर्यमणि, चांदी और सुवर्ण सदृश है।

ये पर्वत ऊपर और मूल में समान विस्तार वाले हैं एवं इनके पाश्र्वभाग चित्र- विचित्र मणियों से निर्मित हैं।

धन्यवाद

उम्मीद करते हैँ आपको यह लेख पसंद आया होगा l कमेंट जरूर करें एवं अपना बहुमूल्य सुझाव भी दे .

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Open chat
1
How May I Help You.
Scan the code
Vishwakarma Guru Construction
Hello Sir/Ma'am, Please Share Your Query.
Call Support: 8002220666
Email: Info@vishwakarmaguru.com


Thanks!!