क्या आप जानते हो कि योग करने से लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जीया जा सकता है। इसके अभ्यास से शरीर में चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है। आओ आज योग के बारे में जानें।
योग मूल रूप से एक आध्यात्मिक अनुशासन है। यह एक अत्यंत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित है, जो मन और शरीर के बीच सामंजस्य लाने पर ध्यान केंद्रित करता है। यह स्वस्थ जीवन जीने का विज्ञान भी है और कला भी। ‘योग’ शब्द संस्कृत शब्द ‘युज’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘जुड़ना’ या ‘मिलाना’ या ‘एकजुट होना’। मन की चंचलताओं या क्रियाओं पर नियंत्रण करना ही योग है। वेदों के विद्वान आचार्य सायण लिखते हैं, “जो पहले से प्राप्त न हो, उसे प्राप्त करने का तरीका योग है।”
योग की मौलिक भावना उपनिषदों से जुड़ी है, जो बताती है कि आत्मा ही सत्य और शुद्ध है, पर यह संसार में रमी रहती है और अनित्य यानी नाशवान पदार्थों के पीछे दौड़ती रहती है। योग द्वारा हम आत्मा को शुद्ध रख सकते हैं।
किसी को कष्ट न देना, झूठ न बोलना, किसी को न लूटना, शुद्धता, संतोष, तप, स्वाध्याय आैर ईश्वर की अराधना ऐसे कर्तव्य हैं, जिनका पालन योगमार्ग का सहारा लेने वाले व्यक्ति के लिए जरूरी है। योग को हम दो तरह से समझ सकते हैं। इनमें एक प्राणायाम है, जो ध्यान एवं एकाग्रता के लिए उपयोगी है। आसनों का दूसरा प्रकार शारीरिक रोगों के निवारण आैर स्वास्थ्य के लिए है। वास्तव में आसनों का प्रारंभिक उद्देश्य है, रोगों का निवारण एवं स्वस्थ शारीरिक संस्कार की प्राप्ति करना। यदि कोई योगी अपेक्षाकृत स्वस्थ शरीर वाला है तो वह प्राणायाम एवं अन्य अंगों का अभ्यास कर सकता है। आसनों के अतिरिक्त योगाभ्यासी को अपनी नासिका के अग्रभाग पर अपलक देखते रहना होता है, जिसका निर्देश श्रीकृष्ण ने गीता में भी दिया है।
महाभारत में लिखा है कि योगी को तैलयुक्त पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। उसे तब योगाभ्यास नहीं करना चाहिए, जब पेट में वायु हो या वह भूखा हो या थका हो या जब मन से अव्यवस्थित हो या जब अधिक शीत या ऊष्ण हो। गीता में कहा गया है- “जो अधिक खाता है या पूर्ण उपवास करता है, वह योग में सफल नहीं हो सकता।” योग न केवल हमारे शरीर की मांसपेशियों को अच्छा व्यायाम देता है, बल्कि यह हमारे दिमाग को शांत रखने में भी मदद करता है। यदि हम योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करते हैं तो तनावमुक्त जीवन जी सकते हैं। यह दिमाग को हमेशा शांत रखता है।