खेती-किसानी।
– फोटो : Amar Ujala
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मिर्जापुर जैसी वेब सीरीज और ‘कालीन भैया’ जैसे इसके पात्रों ने लोगों के मन में पूर्वांचल की एक अलग ही पहचान बनाई है। लेकिन अब पूर्वांचल की छवि तेजी से बदल रही है और तेज रफ्तार वाले एक्सप्रेस-वे और विकास ने इसकी जगह लेना शुरू कर दी है। अब पूर्वांचल की एक अलग पहचान भी बनने जा रही है, जो आने वाले समय में पूरी दुनिया में पूर्वांचल की सुंदरता और इसकी खुशबू से लोगों का मन मोहेगी। यह खुशबू लीची की होगी, जो गोरखपुर में पैदा होगी। अभी तक बिहार का मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर और चंपारण का क्षेत्र ही लीची के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। मिठास से भरी लीची को उसकी खूबसूरती और खूबियों के कारण ‘फलों की रानी’ भी कहा जाता है।
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दरअसल, कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि गोरखपुर की आबोहवा कमोबेश उसी तरह की है जिस तरह की मुजफ्फरपुर एरिया (एग्रो क्लाइमेट जोन) में पाई जाती है। ऐसे में उनका मानना है कि लीची उत्पादन के लिए गोरखपुर के आसपास का क्षेत्र आदर्श हो सकता है। इसी विचार के साथ पूर्वांचल के इस इलाके में लीची उत्पादन का प्रयास किया गया, जिसमें कृषि वैज्ञानिकों को बहुत अच्छी सफलता मिली है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि लीची उत्पादन से इस क्षेत्र के किसानों की किस्मत बदल सकती है। ऐसे में सरकार और इसकी कृषि संस्थाओं का भी लीची की खेती पर खास फोकस है।
पूर्वांचल के लिए प्रजातियां
आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह के अनुसार पूर्वांचल के कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार किसानों को कुछ खास प्रजातियों के रोपण की सलाह दी जाती है। लीची की रोज सेंटेड, शाही, चाइना, अर्ली वेदाना, लेट बेदाना, गांडकी संपदा और गांडकी लालिमा प्रजातियां यहां बेहतर उत्पादन दे सकती हैं। शाही और चाइना लीची के करीब 40-50 एकड़ बाग लगाए जा चुके हैं।
लीची के साथ-साथ किसान सीजन के अनुसार सहफसल भी ले सकते हैं। शुरुआत के कुछ वर्षों में फूलगोभी, पत्तागोभी, मूली, गाजर, मेंथी, पालक, लतावर्गीय सब्जियां उगाई जा सकती हैं। जब पौधों की छांव अधिक होने लगे, तो छायादार जगह में हल्दी, अदरक और सूरन की खेती भी कर सकते हैं। ऐसा करने से बागवानों की आय तो बढ़ेगी ही, सहफसल के लिए लगातार देखरेख से बाग का भी बेहतर प्रबंधन हो सकेगा।