प्योंगयांग में कुमसुसान गेस्टहाउस के बगीचे में पालतू कुत्तों के साथ व्लादिमीर पुतिन और किम जोंग उन
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भारत में पालतू कुत्तों की आबादी 3.1 करोड़ है और पालतू बिल्लियों की संख्या करीब 24.4 लाख। 2026 तक यह आंकड़ा क्रमश: 4.3 करोड़ और 48.9 लाख तक पहुंचने का अनुमान है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि इन बेजुबानों को पालने वाले इन्हें बिल्कुल अपने बच्चे की तरह रखते हैं, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो जानवरों को इस तरह पालना उन्हें प्रेम करना नहीं, बल्कि कुछ हद तक उन्हें पीड़ा देने जैसा है।
न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, विशेषज्ञों का कहना है कि खुले माहौल से दूर रहने की वजह से पालतू जानवर कई तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया स्कूल ऑफ वेटरनरी मेडिसिन में प्रोफेसर रहे जेम्स सर्पेल कहते हैं, हम पालतू जानवरों को एकदम बच्चों की तरह मानते हैं और उनकी सुरक्षा की चिंता में कई तरह की पाबंदियां लगा देते हैं। समस्या यह है कि कुत्ते-बिल्लियां बच्चे नहीं हैं और पूरी आजादी के साथ अपने मूल स्वभाव को व्यक्त न कर पाने के कारण व्यवहारगत समस्याओं के शिकार हो जाते हैं। अमेरिका में सबसे लोकप्रिय कुत्तों की नस्लों में से एक फ्रेंच बुलडॉग को ही ले लीजिए। ब्रेकीसेफेलिक परिवार का यह सदस्य वैसे तो लोगों के साथ अच्छी तरह घुल-मिल जाता है, लेकिन नैसर्गिक माहौल न मिलने से उसे सांस लेने में परेशानी होने लगती है।
वजन और आक्रामकता में हो रही वृद्धि
विशेषज्ञों के मुताबिक, पालतू कुत्तों-बिल्लियों को उनके मालिक, होटल, रेस्टोरेंट, ऑफिस, मॉल, स्टोर सभी जगह लेकर जाते हैं, लेकिन उन्हें 70 के दशक की तरह अपने आस-पड़ोस की जगहों में खुला घूमने का मौका नहीं मिलता। इससे उनमें मोटापे की समस्या भी बढ़ रही है। पालतू पशुओं में करीब 60 फीसदी बिल्लियां और कुत्ते अब अधिक वजन वाले या मोटे हैं। यही नहीं, बंदिशों में रहने वाले इन बेजुबानों में आक्रामकता भी बढ़ रही है। खुला माहौल न मिलने से पालतू पशुओं की प्रजनन प्रक्रिया भी प्रभावित होती है। वह एक तरह की सुस्ती और निराशा से भर जाते हैं।