भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद ओम बिरला को बुधवार को ध्वनिमत से लोकसभा अध्यक्ष चुन लिया गया। वह दूसरी बार इस उत्तरदायित्व को संभाल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अध्यक्ष पद के लिए बिरला के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसका रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अनुमोदन किया। इस प्रस्ताव को प्रोटेम स्पीकर (कार्यवाहक अध्यक्ष) भर्तृहरि महताब ने सदन में मतदान के लिए रखा और इसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। इसके बाद कार्यवाहक अध्यक्ष महताब ने बिरला को लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू बिरला को अध्यक्षीय आसन तक लेकर गए। जब बिरला ने अध्यक्षीय आसन ग्रहण किया तो पीएम मोदी, राहुल गांधी और रिजिजू ने उन्हें बधाई और शुभकामना दी। ऐसा पांचवीं बार ऐसा होगा कि कोई अध्यक्ष एक लोकसभा से अधिक कार्यकाल तक इस पद पर आसीन रहेगा। इसके अलावा एक तथ्य यह भी है कि कांग्रेस नेता बलराम जाखड़ एकमात्र ऐसे पीठासीन अधिकारी रहे हैं, जिन्होंने सातवीं और आठवीं लोकसभा में दो कार्यकाल पूरे किए हैं। इसके अलावा आज तक किसी ने भी इस आसन पर दो कार्यकाल पूरे नहीं किए हैं।
एम. अनन्तशयनम अय्यंगर देश के दूसरे लोकसभा अध्यक्ष बने। उन्होंने लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर के आकस्मिक निधन के बाद अध्यक्ष पद का दायित्व ग्रहण किया था। गणेश वासुदेव मावलंकर लोकसभा के पहले अध्यक्ष थे। कांग्रेस के लोकसभा सांसद मावलंकर का कार्यकाल मई 1952 से फरवरी 1956 तक था। कांग्रेस पार्टी के सांसद अय्यंगार के दो कार्यकाल रहे, जिसमें पहला मार्च 1956 से मई 1957 तक और दूसरा मई 1957 से अप्रैल 1962 तक रहा।
2. डॉ. नीलम संजीव रेड्डी
डॉ. नीलम संजीव रेड्डी ने लोकसभा के चौथे अध्यक्ष के रूप में काम किया। रेड्डी के भी दो कार्यकाल रहे, लेकिन दोनों लगातार नहीं रहे। पहला मार्च 1967 से जुलाई 1669 तक और दूसरा मार्च 1977 से जुलाई 1977 तक रहा। ऐसे में रेड्डी इकलौते रहे हैं, जो दो बार लोकसभा अध्यक्ष बने, लेकिन लागातार नहीं।
खास बात यह भी है कि नीलम संजीव रेड्डी ऐसे एकमात्र अध्यक्ष हैं जिन्होंने अध्यक्ष पद का कार्यभार सम्भालने के बाद अपने दल से औपचारिक रूप से त्यागपत्र दे दिया था। उनका यह मानना था कि अध्यक्ष का संबंध सम्पूर्ण सभा से होता है, वह सभी सदस्यों का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए उसे किसी दल से जुड़ा नहीं होना चाहिए या यों कहें कि उसका संबंध सभी दलों से होना चाहिए। वह ऐसे एकमात्र लोकसभा अध्यक्ष भी थे, जिन्हें सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुने जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
3. डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों
नीलम संजीवा रेड्डी द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए लोकसभा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिए जाने पर डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों को अगस्त 1969 में सर्वसम्मति से लोकसभा अध्यक्ष चुना गया। जब ढिल्लों इस पद के लिए निर्वाचित हुए तो वे उस समय तक लोकसभा के जितने अध्यक्ष हुए थे, उनमें से सबसे कम उम्र के अध्यक्ष थे। कांग्रेस नेता ढिल्लों ने दो बार लोकसभा अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। पहला कार्यकाल अगस्त 1969 से मार्च 1971 तक और दूसरा मार्च 1971 से दिसंबर 1975 तक रहा।
4. डॉ. बलराम जाखड़
डॉ. बलराम जाखड़ ने सातवीं लोकसभा के लिए अपने सर्वप्रथम निर्वाचन के तुरंत बाद अध्यक्ष पद हासिल किया। उन्हें लगातार दो बार लोकसभा अध्यक्ष चुना गया। कांग्रेस से आने वाले जाखड़ का पहला कार्यकाल जनवरी 1980 से जनवरी 1985 तक और जनवरी 1985 से दिसंबर 1989 तक रहा। बलराम जाखड़ पहले ऐसे लोकसभा अध्यक्ष बने थे, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद फिर से यह जिम्मेदारी संभाली थी औ अगले पांच साल का कार्यकाल भी पूरा किया था। अब तक जाखड़ के अलावा कोई भी स्पीकर पांच-पांच साल के दो कार्यकाल पूरे नहीं कर सका है।
5. गन्ती मोहन चन्द्र बालायोगी
गन्ती मोहन चन्द्र बालायोगी को 12वीं लोक सभा का अध्यक्ष निर्वाचित होने और सर्वसम्मति से 13वीं लोकसभा का अध्यक्ष पुनः निर्वाचित होने का गौरव हासिल है। तेलुगूदेशम पार्टी सांसद बालायोगी ने मार्च 1998 में देश के राजनैतिक इतिहास के अत्यंत नाजुक दौर में लोकसभा अध्यक्ष के महत्वपूर्ण पद के लिए निर्वाचित हुए। टीडीपी उस समय गठबंधन सरकार का बाहर से समर्थन कर रही थी। उस समय किसी भी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था। बालायोगी इस पद पर आसीन होने वाले आज तक के सबसे कम आयु के व्यक्ति थे। एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालायोगी की दुखद मृत्यु हो गई थी।