अगर सार्वजनिक सेवाएं देने वाले अधिकारी लोगों के साथ सहानुभूतिपूर्वक जुड़ेंगे और उनसे ठीक से संवाद करेंगे तो वे परेशान या असहाय महसूस नहीं करेंगे। केरल उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को यह टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने कहा कि कई बार सार्वनजिक सेवाओं से संपर्क करने वाले लोग संचार की कमी और उदासीनता के कारण खुद को परेशान महसूस करते हैं। उन्होंने कहा, यह उनकी गरिमा का उल्लंघन होने जैसे है और इससे पैदा हुई हताशा, लाचारी और निराशा लोगों को चरम कदम उठाने पर मजबूर कर देती है।
अदालत ने कहा, अगर प्रभारी अधिकारी इसे समझते हैं और सेवाओं का अनुरोध करने वालों के साथ सहानुभूतिपूर्वक जुड़ते हैं, संचार की पर्याप्त लाइन खालते हैं और प्रक्रिया के बारे में उन्हें खुश रखते हैं, तो इनमें से ज्यादातर मुद्दों का ध्यान रखा जा सकता है।
अदालत ने ये टिप्पणियां एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कीं। याचिका में आरोप लगाया गया था कि एक व्यक्ति ने इसलिए आत्महत्या की क्योंकि उसे समय पर भविष्य निधि नहीं मिली। हालांकि, रोजगार भविष्य निधि संगठन ने आरोपों से इनकार किया था और दावा किया था कि यह घटना इसलिए हुई क्योंकि व्यक्ति को इसमें शामिल प्रक्रियाओं की समझ नहीं थी।
अदालत ने कहा कि वह याचिका में लगाए गए आरोपों की पु्ष्टि नहीं कर रही है। बल्कि केवल यही कह रही है कि यह मामला न केवल संस्था के लिए बल्कि सभी सार्वजनिक अधिकारियों के लिए आंख खोल देने वाला है। यह बताता है कि कैसे असहाग लोग ऐसे कदम उठा सकते हैं।
अदालत को बताया गया कि पुलिस ने मौत की जांच की थी। लेकिन जांच में क्या प्रगति हुई, इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी गई। इसके बाद अदालत ने कोच्चि शहर के पुलिस आयुक्त और एर्नाकुलम टाउन नॉर्थ पुलिस के प्रभारी को इसमें शामिल किया औऱ उनसे जांच की स्थिति के बारे में सूचना देने को कहा।