बीते पूरे हफ्ते उत्तर प्रदेश भाजपा में हार को लेकर हो रही समीक्षा से जुड़ी खबरों ने सुर्खियां बटोरीं। भाजपा नेताओं के बयानों के कई मायने निकाले गए। खबरों के बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मानसून ऑफर तक दे डाला। केशव प्रसाद मौर्य के बयानों ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं।
लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद भाजपा में हो रही बयानबाजी के क्या मायने हैं? क्या पार्टी संगठन और सरकार में भी कुछ बदलाव होने वाला है? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के बीच की खींचतान की क्या कहानी है? इन्हीं सवालों पर इस हफ्ते के खबरों के खिलाड़ी में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार समीर चौगांवकर, विनोद अग्निहोत्री, अवधेश कुमार, पूर्णिमा त्रिपाठी, हर्षवर्धन त्रिपाठी और बिलाल सब्जवारी मौजूद रहे।
पूर्णिमा त्रिपाठी: अभी केशव मौर्य के जो बयान सामने आए हैं उसकी शुरुआत 2017 से शुरू हो गई थी। इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा के मुताबिक परिणाम नहीं आए हैं, तो योगी आदित्यानथ से नाराज लोगों को एक तरह के पलटवार का मौका मिल गया है। इसी वजह से योगी आदित्यानाथ को पद से हटाने की चर्चा शुरू हो गई। हालांकि, इसकी संभावना बिलुकल नहीं है। मुझे नहीं लगता है कि उत्तर प्रदेश के उपचुनाव से पहले भाजपा संगठन या सरकार में कोई बदलाव होने जा रहा है।
हर्षवर्धन त्रिपाठी: राजनीति में हर किसी को सबसे ऊपर वाली कुर्सी दिखाई देती है। यह स्वाभाविक है। केशव प्रसाद मौर्य कौशांबी में विश्व हिंदू परिषद से यहां तक आए हैं। भाजपा की पिछड़ी जातियों में जो पैठ की है उसके वो बड़े चेहरे हैं। अभी दो चीजें हुई हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही संगठन और सरकार के बीच का जो संघर्ष था वो इस चुनाव में सतह पर आ गया। मंत्री विधायक तो अपना काम तो करा लेते हैं, लेकिन कार्यकर्ता का काम नहीं हो रहा है। अभी 33 सीटें आई हैं तो जवाबदेही तो तय होगी। टिकट खराब बंटे ये सब जानते हैं।
समीर चौगांवकर: भाजपा को सभी जगह मंथन करने की जरूरत है। जो परिणाम आए हैं वो भाजपा के लिए बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहे हैं। केशव प्रसाद मौर्य की छवि और योगी आदित्यनाथ की छवि में भी बहुत फर्क रहा है। पार्टी मानती है कि योगी आदित्यनाथ ने बहुत बेहतर प्रदर्शन किया है। पार्टी ने केशव प्रसाद मौर्य का भी सम्मान किया है। अपनी जो भी राय थी वह पार्टी फोरम पर कही जाती तो बेहतर होता। मुझे लगता है कि सार्वजनिक मंच पर इस तरह की बातें कहकर केशव प्रसाद मौर्य ने अपनी छवि को नुकसान पहुंचाया है।
बिलाल सब्जवारी: भाजपा को इस समय अपने संगठन के अंदर परिवर्तन की जरूत थी। मैं यह समझता हूं कि बदलती राजनीतिक परिस्थिति के अंदर जो पिछड़ों की गोलबंदी हुई। केशव प्रसाद मौर्य पिछड़ों की इस गोलबंदी की स्थिति का दोहन करने की कोशिश कर रहे हैं। पिछड़ी राजनीति के इस विमर्श को भाजपा शायद छूने में चूक कर रही है।
विनोद अग्निहोत्री: जब किसी पार्टी का चुनाव में अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं होता तो इस तरह की स्थितियां उत्पन्न होती हैं। जो इस समय उत्तर प्रदेश भाजपा में दिख रही हैं। चुनाव में अपेक्षाकृत परिणाम नहीं आने का ठीकरा एक दूसरे पर फोड़ने पर कोशिश हो रही है। योगी आदित्यनाथ तो अपने मंडल की लगभग सभी सीटें जीते हैं। रही बात केशव प्रसाद मौर्य की तो राजनीति में कोई भी व्यक्ति हो वो देवता नहीं होता है। उसके अंदर सत्ता का शीर्ष पद पाने की लालसा होती है।