पूर्वी लद्दाख में चीन से जारी गतिरोध के बीच हाल ही में जारी सैटेलाइट तस्वीरों से खुलासा हुआ है कि चीन ने पैंगोंग त्सो पर पुल का निर्माण कार्य पूरा कर लिया। यह पुल अब बन कर तैयार है। एलएसी के पास यह पुल बनाने के पीछे चीन का मकसद झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों के बीच सैनिकों की जल्द तैनाती है। वहीं झील के उत्तरी छोर पर फिंगर 8 से यह पुल करीब 20 किमी दूर पूर्व में है। लद्दाख के गलवान घाटी में खूनी झड़प के बाद साल 2021 में चीन ने इस पुल का निर्माण कार्य शुरू किया था।
जियो-इंटेलिजेंस एक्सपर्ट डेमियन सिमोन की तरफ से जारी 17 जुलाई 2024 की सैटेलाइट इमेज से जानकारी मिली है कि पुल बन कर तैयार है, वहीं पुल पर सड़क भी बन कर तैयार है। जबकि 02 जुलाई 2024 को ब्रिज औऱ कनेक्टिंग रोड तो बन कर तैयार थी, लेकिन उस पर ब्लैकटॉपिंग नहीं हुई थी। सूत्रों ने बताया कि यह पुल अक्तूबर 2021 के आसपास बनना शुरू हुआ था। यह पुल 134 किलोमीटर लंबी पैंगोंग झील के सबसे संकरे बिंदु पर स्थित खुर्नक किले के पास बनाया जा रहा है। चीन ने जून 1958 में खुर्नक किले के आसपास के इलाके पर कब्जा कर लिया था।
वहीं यह पुल पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी किनारे को दक्षिणी किनारे से जोड़ेगा, जिससे चीन को एक किनारे से दूसरे किनारे पर तेजी से सेना भेजने में आसानी हो जाएगी। साथ ही अग्रिम इलाकों में सप्लाई और रसद की तेजी से आवाजाही भी हो सकेगी। इसके अलावा दक्षिण किनारे पर स्थित रेजांग ला के नजदीक स्पांगुर त्सो तक पहुंच आसान हो जाएगी। वहीं, पैंगोंग के उत्तरी किनारे पर फिंगर-4 तक चीन तेजी से पहुंच सकेगा। भारत के दावे के मुताबिक यह पुल वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से 40 किमी की दूरी पर है। यह पुल सिरिजाप से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर है, जो फिंगर 8 क्षेत्र के पूर्व में स्थित है। इस इलाके पर भारत अपना दावा करता है।
भारत ने किया था पैंगोंग त्सो के किनारे की चोटियों पर कब्जा
दरअसल इस पुल का निर्माण करने के पीछे यह वजह है कि चीन फिर से अगस्त 2020 को दोहराना नहीं चाहता है। मई 2020 में पैंगोंग त्सो में चीन के साथ हुई झड़प के बाद 15-16 जून 2020 में गलवान घाटी में बड़ी हिंसक झड़प हुई थी। इस झड़प में 20 बहादुर भारतीय सैनिक शहीद हो गए और 40 से ज्यादा संख्या में चीनी सैनिक भी मारे गए थे। जिसके बाद से दोनों देशों के बीच लंबे समय से गतिरोध जारी है, जो जल्द खत्म होता नहीं दिख रहा है। अगस्त 2020 में भारतीय सेना ने एक स्पेशल ऑपरेशन को अंजाम देते हुए 29 और 30 अगस्त 2020 की रात को पैंगोंग त्सो के दक्षिणी किनारे की चोटियों पर कब्जा कर लिया था। वहीं चीन का यह पुल खुर्नक से दक्षिणी तट के बीच करीब 200 किमी की दूरी को खत्म कर देगा। पुल बन जाने के बाद खुर्नक से रुतोग तक का रास्ता 200 किमी की बजाय अब केवल 40-50 किमी का होगा। वहीं, चीन की मोल्दो गैरिस तक पहुंच आसान होगी।
चुशूल के रास्ते भारत में घुस सकता है चीन
14,000 फीट से भी ज्यादा ऊंचाई पर स्थित पैंगोंग त्सो 3,488 किमी लंबी एलएसी से होकर गुजरती है। पूर्वी लद्दाख में आने वाली करीब 826 किलोमीटर लंबी एलएसी के लगभग बीच में पैंगोंग त्सो पड़ती है। इसकी लंबाई 135 किलोमीटर है और यह 604 वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा क्षेत्र में फैली है। कहीं-कहीं इसकी चौड़ाई 6 किलेामीटर तक है। इस झील का 45 किमी क्षेत्र भारत में, जबकि 90 किमी क्षेत्र चीन में पड़ता है। रणनीतिक रूप से यह झील इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर चीन भारत पर आक्रमण करना चाहे, तो उसके पास चुशूल के रास्ते भारत में घुसने का विकल्प है और उसी के रास्ते में यह झील पड़ती है।
भारत तेजी से डेवलप कर रहा इंफ्रास्ट्रक्चर
भारतीय सैन्य सूत्रों ने भी कहा है कि इस इलाके में चीन की गतिविधियों पर भारत की नजर है और एलएसी के पास सभी महत्वपूर्ण इलाकों में तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जा रहा है। हाल ही में भारत ने अपनी सीमा में कई पुलों और मजबूत सड़कों का निर्माण किया है। ताकि चीन की तरफ से किसी भी दुस्साहस से निपटने के लिए जल्द ही सैनिकों की टुकड़ी के साथ ही टैंक जैसे भारी सैन्य साजोसामान को बॉर्डर तक पहुंचाया जा सकें।
पैंगोंग के आसपास चीन ने बनाए बंकर
इससे पहले 31 मई को तस्वीरें आईं थीं कि चीनी सेना पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के आसपास के क्षेत्र में खुदाई कर रही है, और उसने हथियार और ईंधन के स्टोर करने के लिए भूमिगत बंकरों का निर्माण किया है। पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर सिरजाप में चीनी सेना का बेस झील के आसपास तैनात चीनी सैनिकों का मुख्यालय है, जो एलएसी से लगभग 5 किमी दूर है। मई 2020 में एलएसी पर गतिरोध शुरू होने तक, यह क्षेत्र लगभग पूरी तरह से नो मेंस लैंड था। यह बेस गलवान घाटी से 120 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। चीन ने ये शेल्टर्स हवाई हमलों से बचने के लिए बनाए हैं।
शिगात्से एय़रबेस 6 जे-20 तैनात
वहीं इससे पहले सैटेलाइट इमेजेज से खुलासा हुआ था कि चीन ने अपने शिगात्से एय़रबेस पर लगभग आधा दर्जन चेंग्दू जे-20, चीन के सबसे उन्नत स्टेल्थ लड़ाकू जेट, को तैनात था। शिगात्से बेस पश्चिम बंगाल में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के हासीमारा बेस से करीब 300 किलोमीटर दूर स्थित है, जहां राफेल लड़ाकू विमानों का एक स्क्वाड्रन है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन द्वारा जे-20 की तैनाती का उद्देश्य भारतीय वायुसेना के सबसे उन्नत विमानों में से एक राफेल का मुकाबला करना है। वहीं कुछ जे-20 को झिंजियांग में तैनात किया गया है। जबकि 30 जून को जारी सैटेलाइट इमेज में शिगात्से एयरबेस के सेंट्रल एप्रन पर कम से कम दो जे-10 जेट खड़े दिखाई दिए थे।