में ग्रीनहाउस गैसों में भारी वृद्धि से भूमध्यरेखीय इलाकों में वारिश में कमी आ सकती है, जिसके कारण वनस्पतियों में भी बदलाव आ सकता है। पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत और अंडमान के सदाबहार वनों से युक्त भारत के जैव विविधता वाले हिस्सों की जगह पर्णपाती जंगल ले रहे हैं। पर्णपाती वन एक प्रकार के वन को कहते हैं, जिसमें चौड़ी पत्तियों वाले पेड़ होते हैं जो सर्दियों के मौसम में अपने पत्ते गिरा देते हैं।
जियोसाइंस फ्रंटियर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, ग्रीनहाउस गैसें धरती को गर्म करती हैं। दुनियाभर में पिछले 150 वर्षों में वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों में हुई सभी तरह की वृद्धि के लिए मानवजनित गतिविधियां जिम्मेदार रही हैं। इसका सबसे बड़ा स्रोत ताप बिजली और यातायात के लिए जीवाश्म ईंधन का जलना है। नासा ने भी वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और कुछ
अन्य ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में वृद्धि देखी है। इन ग्रीनहाउस गैसों की अधिकता के कारण पृथ्वी का वायुमंडल अधिक से अधिक गर्मी को रोक सकता है। इससे पृथ्वी गर्म हो जाती है।
प्राकृतिक चक्रों को कर रहा प्रभावित
ग्रीन हाउसें प्राकृतिक चक्रों और घटनाओं के समय को विगाड़कर जैव विविधता को भी प्रभावित कर रहा है। मौसम के पैटर्न में बार-बार होने वाले बदलाव जैसे कि शुरुआती वसंत या गर्म सर्दियां, जीवन की प्राकृक्तिक लय को बाधित कर सकते हैं। मौसम के पैटर्न में कोई भी बड़ा बदलाव अलग-अलग समय पर हो सकता है। उदाहरण के लिए पक्षी प्रजनन स्थलों पर तब पहुंचते हैं जब भोजन का स्रोत कम होता है। यह उनके अस्तित्व के साथ-साथ उनके प्रजनन प्रयासों को भी खतरे में डाल सकता है।
पूरी दुनिया को मिलकर रोकना होगा दोहन
शोधकर्ता कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीनहाउस प्रभाव के बीच मुख्य अंतर मूल में निहित है। ग्रीनहाउस प्रभाव एक प्राकृतिक घटना है और पृथ्वी पर जीवन के लिए फायदेमंद है। हालांकि ग्लोबल वार्मिंग उद्योग, पशुधन, वाहनों और अन्य स्थलीय तत्वों द्वारा उत्सर्जित जीवाश्म गैसों के दहन के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है, जो वैश्विक तापमान में वृद्धि करती है। दूसरी ओर दोनों शब्दों के बीच सीधे संबंध को ध्यान में रखना चाहिए। ग्लोबल वार्मिंग ग्रीनहाउस गैसों के अत्यधिक दोहन का परिणाम है और बदले में जलवायु परिवर्तन का कारण बनता है। इसलिए पूरी दुनिया को मिलकर ग्रीन हाउस गैसों के अत्यधिक दोहन को रोकना होगा।
तापमान एक डिग्री बढ़ने से बिजली गिरने की घटनाओं में 12 फीसदी तक की वृद्धि
एक अन्य अहम घटनाक्रम में वैज्ञानिकों ने चेताया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बिजली गिरने की घटनाओं में लगातार इजाफा होता रहेगा। धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है और तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी भी बिजली गिरने की घटनाओं में 12 फीसदी तक की बढ़ोतरी कर देती है।
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में पूर्व सचिव माधवन नायर राजीवन ने शनिवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से गरज के साथ बारिश वाले बादलों का बनना बढ़ रहा है। भारत सहित हर जगह गरज के साथ बारिश की घटनाओं के बढ़ने के दस्तावेज तैयार किए गए हैं, लेकिन बदकिस्मती से हमारे पास बिजली चमकने की घटनाओं में बढ़ोतरी को पुख्ता करने के लिए लंबे वक्त का आंकड़ा नहीं है। राजीवन ने कहा कि फिर भी हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से गरज के साथ बारिश बढ़ जाती हैं और बिजली अधिक गिरती है।