खेतों में भरा बाढ़ का पानी
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
अनियंत्रित कार्बन उत्सर्जन उष्णकटिबंधीय वर्षा को उत्तर की ओर तेजी से धकेल रहा है। आने वाले दशकों में यह उत्तर में ही शिफ्ट हो जाएगी। इसके चलते भूमध्य रेखा के आसपास के क्षेत्रों में कृषि और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालेगा। भारत के मौसम तंत्र पर भी इसका व्यापक असर पड़ेगा।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से जुड़े जलवायु वैज्ञानिकों ने अपने ताजा अध्ययन पर यह जानकारी दी है। इसके नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ताओं ने कहा है कि उत्तर की ओर बारिश में यह बदलाव बढ़ते उत्सर्जन के कारण वातावरण में हो रहे जटिल परिवर्तनों की वजह से होगा। वायुमंडल में हो रहे यह जटिल बदलाव अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्रों के गठन को प्रभावित कर रहे हैं। यह क्षेत्र मौसम के लिए इंजन के रूप में काम करता है, जो दुनिया में होने वाली करीब एक तिहाई बारिश की वजह बनता है। अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आईटीसीजेड), भूमध्य रेखा के आसपास का क्षेत्र है, जहां उत्तर और दक्षिणी गोलार्ध से आने वाली व्यापारिक हवाएं एक-दूसरे को काटती हैं। इन क्षेत्रों की सबसे बड़ी विशेषता बढ़ती हवा है, जिससे बादल बनते हैं और बारिश होती है।
भारत के उत्तर में बढ़ रहीं आपदाएं
शोधकर्ताओं का कहना है कि अनियंत्रित कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश लगातार उत्तर की तरफ बढ़ रही है। यही वजह है कि भारत के हिमालयी क्षेत्र सहित उत्तर में भारी बारिश के चलते आपदाएं बढ़ रही है। साथ ही उष्णकटिबंधीय वर्षा क्षेत्र भारतीय मानसून को भी प्रभावित कर रहा है।