Bombay High court
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बाम्बे हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे एक पिता को आस्ट्रेलिया पढ़ने जा रहे बेटे की विदाई के लिए 10 दिन की पैरोल को मंजूरी दी। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जब दुख व्यक्त करने के लिए पैरोल दी जा सकती है, तो खुशी के मौके पर भी ऐसा किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे दोषी जो किसी के पिता, बेटे, भाई या पति हैं, उनको कुछ समय के सशर्त रिहाई की अनुमति दी जा सकती है। ताकि वे बाहरी दुनिया के संपर्क में रहें और अपने परिवार की जरूरतों को पूरा कर सकें।
नौ जुलाई को जस्टिस भारती डेंगरे और मंजूषा देशपांडे की पीठ ने हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे विवेक श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई करते हुए पैरोल मंजूर की। पीठ ने इसे दोषियों के प्रति मानवतावादी दृष्टिकोण बताया। विवेक श्रीवास्तव ने आस्ट्रेलिया के एक विवि में पढ़ने जा रहे अपने बेटे की पढ़ाई और अन्य खर्चों के लिए 36 लाख रुपये का इंतजाम करने और उसकी विदाई के लिए एक महीने की पैरोल देने की मांग की थी। मामले में अभियोजन पक्ष ने विरोध जताते हुए कहा कि पैरोल केवल आपातकालीन परिस्थितियों में ही दी जा सकती है। बेटे की पढ़ाई के लिए धन का इंतजाम करने और उसको विदा करने के लिए पैरोल नहीं दी जा सकती। हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष तर्क समझ से परे है।
कोर्ट ने कहा कि यदि शादी के लिए पैरोल दी जा सकती है तो मौजूदा मामले में तो एक पिता को अपने बेटे की जरूरत को पूरा करना है। कोर्ट ने टिप्पणी की- दुख और खुशी एक भावना है। जब दुख व्यक्त करने के लिए पैरोल मंजूर हो सकती है तो खुशी के मौके पर भी ऐसा किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर एक पिता पढ़ाई के लिए खर्च का इंतजाम नहीं कर पाता है तो उसका बेटा अच्छी पढ़ाई का मौका खो सकता है। विवेक श्रीवास्तव 2012 में हुई एक हत्या के मामले में सजा काट रहे हैं। 2018 में उनको आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। विवेक ने 2019 में सजा के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।