प्रचंड गर्मी और बिना बारिश से अगेती मक्की की फसल की पत्तियां लगी मुरझाने लगी
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टिड्डियां अब गंध की मदद से फसलों को पहले से बेहतर तरीके से पहचान रही हैं और उनके अनुसार अपने आपको ढाल भी रही हैं। इस काम को वे अरबों से ज्यादा झुंड में आसानी से अंजाम दे रही हैं। उनके झुंड अब पहले से ज्यादा बड़े होते जा रहे हैं। किसानों के लिए यह बेहद चिंताजनक स्थित है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कोंस्टांज के क्लस्टर ऑफ एक्सीलेंस कलेक्टिव बिहेवियर के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में इन तथ्यों का खुलासा किया है। शोध के परिणाम नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, चार साल पहले जब केन्या में विशालकाय टिड्डी दल ने हमला किया था तब उन्होंने कुछ बड़े इलाकों में फसल को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया था। जब टिड्डियों का झुंड वहां से फसल पूरी तरह चट करके चला गया तब वहां सिर्फ जहरीले पौधे ही बच पाए थे। यह भी गौर किया गया था कि टिड्डियों के झुंड का आकार बढ़ता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन का अनुमान है कि एक अरब टिड्डियों का झुंड एक दिन में लगभग 1,500 टन भोजन चट कर जाता है, जो 2,500 लोगों के एक दिन के भोजन के बराबर है। इसके कारण 10 में से एक व्यक्ति प्रभावित होता है।
कैल्शियम इमेजिंग तकनीक से लगाया गंध का पता
शोधकर्ताओं ने विवो कैल्शियम इमेजिंग तकनीक का उपयोग करके गंध प्रसंस्करण के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क के क्षेत्र पर करीब से नजर डाली। यह प्रक्रिया मस्तिष्क के पूरे क्षेत्रों में सूचना प्रसंस्करण को दर्शाती है। गंध को पहचानने वाले पदार्थ छोटे-छोटे अणु छोड़ते हैं। सांस लेने पर ये अणु नाक में चले जाते हैं। वहां विशेष कोशिकाएं (घ्राण रिसेप्टर्स) इन अणुओं का पता लगाती हैं। रिसेप्टर्स इस जानकारी को घ्राण तंत्रिका के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुंचाते हैं और गंध का अनुभव करने में मदद करते हैं।
इस तरह आ रहा बदलाव… शोध के दौरान जब भोजन और टिड्डियों की गंध को जोड़ा गया तब यह मस्तिष्क की गतिविधि से जुड़कर अपेक्षा से कहीं अधिक तेज हो गई। शोधकर्ताओं के अनुसार यह प्रभाव केवल झुंड में रहने वाली टिड्डियों में पाया गया। इसका मतलब यह है कि अब टिड्डियां झुंड में रहने वाली जीवनशैली अपनाने पर अपनी गंध की भावना को फसलों की गंध के अनुरूप ढाल रही हैं। यानी अब उनकी घ्राण प्रणाली झुंड की मिश्रित गंध में भोजन की गंध को बेहतर ढंग से पहचान रही रही है। यही कारण है कि टिड्डे विशाल झुंड के बावजूद अपने भोजन को पूर्व की अपेक्षा आसानी से समझ में और पहचान रहे हैं।